Skip to main content

Coffee or Cup?




A group of alumni, highly established in their careers, got together to
visit their old university professor. Conversation soon turned into complaints about stress in work and life.

Offering his guests coffee, the professor went to the kitchen and returned with a large pot of coffee and an assortment of cups - porcelain, plastic, glass, crystal, some plain looking, some expensive, some exquisite ones.

Telling them to help themselves to hot coffee. When all the students had a cup of coffee in hand, the professor said:

"If you noticed, all the nice looking expensive cups were taken up, leaving behind the plain and cheap ones. While it is but normal for you to want only the best for yourselves, that is the source of your problems and stress.

What all of you really wanted was coffee, not the cup, but you consciously went for the best cups and were eyeing each other's cups. Now if life is coffee, then the jobs, money and position in society are the cups. They are just tools to hold and contain Life, but the quality of Life doesn't change.

Some times, by concentrating only on the cup, we fail to enjoy the coffee in it."

So, what drives you? Coffee or Cup? Think about it.... & enjoy your cup of Coffee....

uuu are a Coffee of my life......:)

Cheers!

Comments

Popular posts from this blog

सभी धर्मों के लिए भारतीय कैलेंडर को अपनाने की आवश्यकता: वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण

  आर्यन प्रेम राणा, निदेशक  VRIGHTPATH  ग्रेगोरियन नववर्ष की रात को मनाने के तरीके समाज के लिए हानिकारक आज  जब हम 2024 के अंत को मनाने और 2025 का स्वागत करने के लिए रेव पार्टियों में जाने, शराब पीने, नशीली दवाइयां लेने और अनुचित व्यवहार करने के बारे में सोच रहे हैं, तब मैं सभी हिंदुओं और हर व्यक्ति से अपील करता हूं कि वे #VRIGHTPATH अपनाएं और सनातन हिंदू कैलेंडर को अपनाने पर विचार करें। यह समय है सच्चे सुख, सांस्कृतिक समृद्धि और आध्यात्मिक विकास को बढ़ावा देने वाले मूल्यों पर विचार करने का। भारतीय कैलेंडर, जो वैज्ञानिक सटीकता और प्राकृतिक चक्रों पर आधारित है, न केवल हिंदुओं बल्कि सभी धर्मों के लिए एक आदर्श समय गणना प्रणाली है। यह खगोलीय घटनाओं और सांस्कृतिक महत्व का ऐसा समन्वय प्रस्तुत करता है, जो इसे सार्वभौमिक अपनापन के लिए उपयुक्त बनाता है। इसके विपरीत, ग्रेगोरियन कैलेंडर, जो आज प्रचलित है, न तो वैज्ञानिक रूप से सटीक है और न ही सांस्कृतिक रूप से प्रासंगिक। भारतीय कैलेंडर का वैज्ञानिक आधार प्रकृति के साथ तालमेल: भारतीय कैलेंडर में नववर्ष चैत्र मास से शुरू होता है,...

श्रृष्टि सम्वत: सृजन पर आधारित सबसे पुराना और दिव्य कैलेंडर

आर्यन प्रेम राणा, निदेशक  VRIGHTPATH  आधुनिक विज्ञान केवल कुछ शताब्दियों पहले उत्पन्न हुआ था, जबकि ब्रह्मांड, समय और सृजन के बारे में प्राचीन भारतीय ज्ञान सदियों से साहित्य और कैलेंडरों में संचित है। यह एक दिलचस्प सवाल उठाता है: प्राचीन भारतीय ग्रंथों और कैलेंडरों में पाए गए गहरे दृष्टिकोण, विशेष रूप से श्रृष्टि सम्वत, आ धुनिक वैज्ञानिक खोजों से कैसे मेल खाते हैं या उनसे चुनौती पेश करते हैं?  श्रृष्टि सम्वत, जो सृजन के ब्रह्मांडीय चक्रों पर आधारित एक दिव्य कैलेंडर है, समय पर एक अद्वितीय दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है, जो आधुनिक वैज्ञानिक सोच के रैखिक दृष्टिकोण को पार करता है और ब्रह्मांड और हमारे अस्तित्व की एक समग्र, चक्रीय समझ प्रदान करता है। उत्पत्ति और इतिहास श्रृष्टि सम्वत एक अद्वितीय और पवित्र कैलेंडर है, जो प्राचीन वेदिक उपदेशों में गहरे रूप से निहित है। "श्रृष्टि" शब्द का अर्थ है दिव्य ज्ञान या दिव्य रहस्योद्घाटन, और "सम्वत" का अर्थ है वर्षों की एक प्रणाली। दोनों मिलकर "सृजन का दिव्य कैलेंडर" बनाते हैं, जिसे माना जाता है कि यह सृजन के शाश्वत ब्रह्मांड...

अद्भुत! ₹3 लाख प्रति माह तनख्वाह को त्याग एक आईआईटी ग्रैजुएट बने संत | अभय सिंह डिप्रेशन दुखद पारिवारिक संघर्षों से जूझते रहे

 लेखक: आर्यन राणा, संस्थापक,  VRIGHTPATH इस दुनिया में, जहाँ शैक्षणिक सफलता को अक्सर जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि माना जाता है, वहाँ अभय सिंह की यात्रा, जिन्हें लोकप्रिय रूप से इंजीनियर बाबा के नाम से जाना जाता है, एक नई दिशा दिखाती है। अभय सिंह, जो IIT बॉम्बे से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में स्नातक हैं, ने विज्ञान और प्रौद्योगिकी के आकर्षण को छोड़कर आध्यात्मिकता का मार्ग अपनाया। उनका जीवन यह दिखाता है कि शिक्षा और आध्यात्मिकता एक-दूसरे के पूरक हो सकते हैं। IIT से स्नातक और डिज़ाइन में मास्टर डिग्री प्राप्त करने के बाद, उन्होंने दिल्ली और कनाडा की शीर्ष कंपनियों में काम किया, जहां उनकी तनख्वाह ₹3 लाख प्रति माह थी। बावजूद इसके, वे डिप्रेशन से जूझते रहे और जीवन का गहरा उद्देश्य खोजने के लिए आध्यात्मिकता की ओर अग्रसर हुए। भारत लौटकर उन्होंने मनाली, शिमला और हरिद्वार जैसे आध्यात्मिक स्थलों की यात्रा की और अंततः श्री पंचदशनाम जुना अखाड़ा का हिस्सा बनकर अपने उच्च वेतन वाले एयरोस्पेस इंजीनियरिंग करियर को त्याग दिया। अभय का बचपन घरेलू हिंसा और पारिवारिक संघर्षों से भरा था। इस कठिन अतीत ने उ...