आयशा राणा, सह-संस्थापक – VRIGHT PATH
क्यों आज भी
सहस्राब्दियों पुरानी यह परंपरा
प्रासंगिक है
हर
वर्ष जैसे ही
श्राद्ध पक्ष (पितृ पक्ष)
आता है, बहसें
शुरू हो जाती
हैं। अनेक बुद्धिजीवी,
वैज्ञानिक और आधुनिक
चिंतक इसे अंधविश्वास
मानते हैं—“यह
तो बस ब्राह्मणों
द्वारा बनाई गई
एक रस्म है।”
कुछ लोग तो
इसे विज्ञान और
तर्क के युग
में अप्रासंगिक भी
कह देते हैं।
लेकिन यदि आपने कभी सोचा है कि यह परंपरा केवल कौए को भोजन कराने, पिंडदान करने या departed आत्माओं के लिए मंत्र पढ़ने तक ही सीमित है—तो ठहरिए। सच यह है कि श्राद्ध पक्ष अंधविश्वास नहीं है। यह विज्ञान, मनोविज्ञान, पारिस्थितिकी और आध्यात्मिकता का संगम है—जिसे हमारे पूर्वजों ने बिना किसी प्रयोगशाला के सहस्रों वर्ष पहले समझ लिया था। ( English )
पाँच सत्य जो
सनातन धर्म ने
विज्ञान से पहले
जान लिए थे
1. सब कुछ ऊर्जा है – “सर्वं खल्विदं ब्रह्म”
उपनिषदों ने हजारों
वर्ष पहले घोषणा
की कि सम्पूर्ण
अस्तित्व एक ही
स्पंदित ऊर्जा है। आज
क्वांटम फिजिक्स भी यही
कहती है—पदार्थ
वास्तव में ऊर्जा
का ही रूप
है। “ॐ” का
नाद भी उसी
कंपन का प्रतीक
है, जो सृष्टि
की शुरुआत का
अनुगूंज है।
2. मन और शरीर का संबंध
योग और आयुर्वेद
ने सिखाया कि
विचार, श्वास और भावनाएँ
शरीर को प्रभावित
करते हैं। आधुनिक
न्यूरोसाइंस भी मानता
है कि तनाव
शरीर को क्षति
पहुँचाता है, जबकि
ध्यान और प्राणायाम
मस्तिष्क की संरचना
तक को बदल
सकते हैं।
3. चेतना और निरंतरता
भगवद गीता मृत्यु
को वस्त्र बदलने
जैसा बताती है।
आज नज़दीकी-मृत्यु
अनुभव और पुनर्जन्म
की घटनाएँ इस
विचार को चुनौती
देती हैं कि
चेतना केवल शरीर
तक सीमित है।
4. पारिस्थितिक जुड़ाव
नदियों को माँ,
पेड़ों को देवता,
गाय को रक्षक
मानना केवल आस्था
नहीं था—यह
पारिस्थितिकी की गहरी
समझ थी। आधुनिक
पर्यावरण विज्ञान यही कहता
है कि प्रकृति
के एक हिस्से
को नुकसान पहुँचाना
पूरे तंत्र को
असंतुलित कर देता
है।
5. श्वास: मन का रिमोट कंट्रोल
प्राचीन प्राणायाम केवल पूजा-पाठ नहीं
था, बल्कि शरीर
और मन को
नियंत्रित करने का
विज्ञान था। आज
PTSD, एंग्ज़ायटी और डिप्रेशन
के उपचार में
वही श्वसन तकनीकें
उपयोग हो रही
हैं।
शास्त्रों में श्राद्ध:
केवल कर्मकांड नहीं
·
ऋग्वेद में पितरों
को मार्गदर्शक प्रकाशमान
शक्तियों के रूप
में वर्णित किया
गया है।
·
छांदोग्य उपनिषद में पितृयान का उल्लेख
है, जो मृत्यु
को अंत नहीं
बल्कि संक्रमण मानता
है।
· महाभारत में दानवीर कर्ण की कथा बताई गई है, जिसे स्वर्ग में भोजन नहीं मिला क्योंकि उसने पूर्वजों को अन्नदान कभी नहीं किया। पृथ्वी पर लौटकर उसने श्राद्ध किया और इसे कर्तव्य के रूप में स्थापित किया।
·
रामायण में श्रीराम
ने रावण युद्ध
से पहले अपने पिता दशरथ जी के लिए श्राद्ध
किया।
·
गरुड़ पुराण पिंडदान और तर्पण
की गहराई से
व्याख्या करता है।
संदेश स्पष्ट है: श्राद्ध केवल कर्मकांड नहीं, बल्कि पितृ ऋण को स्वीकार करना है—जो हर इंसान के जीवन का मूल है।
आधुनिक विज्ञान की दृष्टि
से श्राद्ध
1.
शोक का उपचार – संरचित स्मरण परिवारों
को हानि से
उबरने में मदद
करता है।
2.
सामाजिक जुड़ाव – ब्राह्मणों, गायों, कौओं
और ज़रूरतमंदों को
भोजन कराना समाज
को जोड़ता है।
3.
पीढ़ियों की निरंतरता – पितृ ऋण
को मानना हमें
अकेलेपन से बचाकर
वंश की श्रृंखला
का हिस्सा होने
का बोध कराता
है।
4.
ऋतु-संतुलन – यह शरद
विषुव (Autumn Equinox) पर आता
है, जब दिन-रात बराबर
होते हैं। आधुनिक
विज्ञान बताता है कि
ऐसे संक्रमण मानव
मन और शरीर
पर गहरा असर
डालते हैं।
5. पारिस्थितिक संदेश – कौओं को भोजन, जल अर्पण, वृक्षारोपण—ये सब प्रकृति को याद करने और उसका सम्मान करने का प्रतीक हैं।
आज के परिवारों
के संदर्भ में:
रिश्तों की मरम्मत
श्राद्ध
केवल पितरों को
अर्पण नहीं है,
बल्कि जीवित माता-पिता और
परिवारजनों के साथ
रिश्तों की मरम्मत
का अवसर भी
है। आज परिवारों
में कई बार
खटास आ जाती
है—
·
विवाह
के बाद बेटे
और माता-पिता
के रिश्तों में
दूरी।
·
किसी
एक बेटे या
बेटी के प्रति
पक्षपात।
·
बहू
के प्रति उदासीनता
या अस्वीकार।
·
संस्कारों
और संवाद की
कमी, जिससे पीढ़ियाँ
अलग-थलग हो
जाती हैं।
सनातन
धर्म बताता है
कि पितृ ऋण केवल मृतकों का नहीं, बल्कि जीवित माता-पिता और बड़ों का भी है। असली श्राद्ध
केवल पिंडदान से
पूरा नहीं होता—यह रोज़मर्रा
के व्यवहार में
सम्मान, सेवा और
करुणा से पूरा
होता है।
श्राद्ध पक्ष हमें यह याद दिलाता है कि हमें अहंकार छोड़कर रिश्तों को सँवारना है। जब परिवार में सामंजस्य होगा, तभी पितरों के प्रति सच्ची श्रद्धा व्यक्त होगी।
अंतिम संदेश: धर्म और
विज्ञान का संगम
आज
विज्ञान कहता है
कि सब कुछ
ऊर्जा है, शोक
को दूर करने
के लिए विधि
चाहिए, पारिस्थितिकी का सम्मान
ज़रूरी है, और
श्वास मन को
नियंत्रित कर सकती
है।
सनातन धर्म यह
सब हज़ारों साल
पहले ही बता
चुका था।
तो
प्रश्न यह नहीं
कि श्राद्ध पक्ष
अंधविश्वास है या
नहीं, बल्कि यह
है कि क्या
हम उसके भीतर
छिपे ज्ञान को
देखने में अंधे
हैं।
पूर्वजों
का सम्मान करके
हम जीवन की
निरंतरता का सम्मान
करते हैं। श्राद्ध
पक्ष केवल मृतकों
का नहीं—यह
जीवितों को जोड़ने,
माता-पिता और
बड़ों की सेवा
करने और प्रकृति
से जुड़ने का
पर्व है।
🙏 धन्यवाद। आपको श्रद्धा-पूर्ण और कर्तव्यनिष्ठ श्राद्ध पक्ष की हार्दिक शुभकामनाएँ!
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