जिस प्रकार क्रिकेटर अपने अनुकूल पिच की आस लगाए बैठे रहते हैं, उसी प्रकार फिल्म के निर्माता-निर्देशक एक अदद स्टोरी के लिए टीवी और न्यूजपेपर खंगालते रहते हैं कि शायद कोई हॉट टॉपिक टपक पड़े। पिछले दिनों भ्रष्टाचार और स्पेक्ट्रम के साथ अचानक प्याज की टीआरपी बढ़ी तो बॉलिवुड में खुशी की लहर दौड़ गई। प्याज जैसे मौलिक विषय पर फिल्म की कल्पना ने साकार रूप ले लिया, जिसके कुछ लीक हुए अंशों को जोड़कर संपूर्ण कथा प्रस्तुत है -
नायक, नायिका के गांव आसपास हैं पर कुछ पुरानी दुश्मनी के कारण आपस में प्याज-बेटी का संबंध नहीं है। नायक की जमीन बंजर है, नायिका की उपजाऊ जिस पर प्याज की खेती होती है। नायिका का बाप बेवड़ा है, भाई आवारा, इसलिए सारा काम नायिका ही संभालती है। नायिका नकचढ़ी है। नायक घर से रोज प्याज -रोटी लाता है और लंच टाइम में मेड़ पर बैठकर खाता है। खाते हुए वह नायिका को ताकता रहता है। एक दिन उसकी मां रोटी के साथ प्याज रखना भूल जाती है, तब वह गाना गाकर नायिका से प्याज मांगता है- दे दे प्याज दे प्याज दे प्याज दे रे, हमें ... । पहला गाना हो जाता है पर नायिका घास नहीं डालती। तब वह बेचारा दूसरा गाना गाने लगता है - प्याज मांगा है तुम्हीं से न इनकार करो ...।
नकचढ़ी नायिका सोचती है कि यह कहीं तीसरा गाना न गाने लग जाए। इस डर से वह दूसरा गाना खत्म होने से पहले ही उसे प्याज दे देती है। पर आदत से मजबूर नायक एक गाना और गाता है- क्या यही प्याज है ...। नायक को नायिका का प्याज बहुत अच्छा लगता है। वह प्याज-रोटी के स्वाद में खो जाता है। सपने में भी उसको नायिका और प्याज ही दिखते हैं। अगले दिन वह खेत पर जल्दी पहुंच कर नायिका का इंतजार करता है। उसे देखते ही वह गाने लगता है- मैं तेरे प्याज में पागल ...। तब नायिका शरमा जाती है फिर दोनों साथ-साथ गाना गाते है- प्याज बिना चैन कहां रे ...। उधर नायिका का बेवड़ा बाप दारू के लालच में उसकी शादी कहीं और करना चाहता है पर नायिका को इसकी भनक लग जाती है । वह नायक को खत लिखती है और गाती है- प्याज तुझे भेजा है खत में ...। नायिका का यह खत खलनायक के हाथ लग जाता है । वह खत को मसलकर फेंक देता है और नायिका का अपहरण कर लेता है। किसी तरह नायक को इसका पता चलता है तो वह खलनायक से लड़कर नायिका को छुड़ा लेता है और उसे सही सलामत घर छोड़ आता है। फिर दोनों प्याज के खेत में उछल- उछल कर गाते हैं- प्याज बांटते चलो ...। नायिका के घर वाले नायक से बहुत इंप्रेस होते है। गाने के प्रभाव से बाप-बेटा दोनों सुधर जाते है।
यहां आकर दर्शक सोच सकते हैं कि अभी तो डेढ़ घंटा हुआ है और फिल्म खत्म होती लग रही है। पर तभी एक टर्निंग पॉइंट सामने आता है। प्याज की कीमतें आसमान छूने लगती है। इधर नायक की बहन की शादी तय हो जाती है। पर ससुराल वाले एक पोटली प्याज दहेज में मांगते है। इस समस्या के निदान लिए अपना कंगाल नायक भगवान की मूर्ति के सामने गाता है- इतना प्याज हमें देना दाता ...। वहां एक बैंक मैनेजर उसकी पीड़ा समझ जाता है और उसे लोन लेने के लिए प्रेरित करता है। नायक भगवान को धन्यवाद देता है और बैंक में जमीन गिरवी रखकर प्याज की एक गठरी ले आता है। पर दुष्ट खलनायक ऐन मौके पर आ धमकता है। वह नायक से गठरी छीन लेता है। इस छीना-झपटी में गठरी नायक के सिर पर लग जाती है और वह याददाश्त खो बैठता है। तब चतुर नायिका उसे अस्पताल न ले जाकर खुद ही उसका इलाज करती है। वह नायक को गाना सुनाती है- जीत जाएंगे हम जब प्याज संग है ...। गाना सुनकर नायक ठीक हो जाता है। ठीक होते ही नायक प्याज की गठरी से खलनायक को पीट-पीट कर अधमरा कर देता है। फिर नायक-नायिका दोनों खलनायक को ठेंगा दिखाकर शादी कर लेते हैं।
By NBT
मृदुल कश्यप
Comments
Post a Comment