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श्रावण मास का अंत नहीं : एक ऋतु, एक साधना — संयम, सेवा और शिव से जुड़ाव का समय

 लेखिकाआयशा राणासह-संस्थापक, VRIGHT PATH

ॐ नमः शिवाय

भारत में श्रावण मास को भगवान शिव का प्रिय महीना माना जाता है। यह केवल व्रत या पूजा-पाठ का समय नहीं, बल्कि एक गहन जीवन-दृष्टि और संवेदनशील पर्यावरणीय चेतना का प्रतीक है। लेकिन एक सामान्य प्रश्न अक्सर उठता है:   ( English  )

भारत में श्रावण अलग-अलग तिथियों पर क्यों पड़ता है?

इसका मुख्य कारण है भारत में उपयोग होने वाली दो भिन्न चंद्र मास प्रणालियाँ:

1.       अमांत प्रणाली (मास का अंत अमावस्या से):

दक्षिण और पश्चिम भारत में जैसे महाराष्ट्र, गुजरात, कर्नाटक, आंध्र, तेलंगाना, गोवा आदि।

2.       पूर्णिमांत प्रणाली (मास का अंत पूर्णिमा से):

उत्तर और मध्य भारत जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, राजस्थान, उत्तराखंड आदि।

इससे 15 दिन का अंतर आ जाता है।

जैसे 2025 में, उत्तर भारत में श्रावण 10 जुलाई से और दक्षिण भारत में 25  जुलाई से शुरू है।

श्रावण मास — केवल वर्जन नहीं, बल्कि प्रकृति के लिए करुणा का पर्व

मानसून के इस मौसम में:

·         ज़मीन जलमग्न हो जाती है

·         साँप, कीड़े-मकोड़े और छोटे जीव बेघर हो जाते हैं

·         पत्तेदार सब्ज़ियों में कीटाणु, फफूंद, और विषाणु बढ़ जाते हैं

·         दूषित जल से संक्रमण और बीमारियों का खतरा रहता है

ऐसे में ऋषियों ने संयम, उपवास और सात्विक जीवन का मार्ग सुझाया — न केवल शरीर की रक्षा के लिए, बल्कि प्रकृति और जीवों के संरक्षण के लिए भी।

मांस और मद्य का त्याग — आस्था से आगे विज्ञान है

श्रावण में मांस-मदिरा त्यागना कोई अंधविश्वास नहीं है:

·         पशु पहले ही बाढ़ और बारिश से असहाय होते हैं

·         पाचन अग्नि मंद होती है, जिससे भारी भोजन से रोग हो सकते हैं

·         शराब और तामसिक भोजन से मानसिक असंतुलन, बीमारियाँ और पर्यावरणीय हानि बढ़ती है

यह त्याग व्यक्तिगत तपस्या नहीं, बल्कि सामूहिक करुणा और संयम की साधना है।

शिव से जुड़ने का सबसे उपयुक्त समय

भगवान शिव संहार और पुनर्निर्माण के देवता हैं — जीवन के हर बदलाव में स्थिरता का प्रतीक।

श्रावण में:

·         शिव-तत्व की ऊर्जा अधिक सक्रिय होती है

·         जलाभिषेक, मंत्र जाप, उपवास और ध्यान से आध्यात्मिक प्रगति होती है

·         यह प्रक्रिया (दिनचर्या) आत्म-निरीक्षण, कर्मों की शुद्धि और ब्रह्मांड से जुड़ाव का अवसर बन जाता है. और फ़िर आपके लिए प्रब्रह्म शिव तत्व में लीन हो जाना ही सब कुछ हो जाता है।



व्यक्तिगत अनुभूति: मेरे लिए हर दिन अब श्रावण बन गया है

मुझे आज भी अपने बचपन का वह दृश्य याद है — उत्तराखंड (गढ़वाल) में मेरी माँ जिन्हें नारायण में अटूट श्रद्धा और भक्ति थी हर श्रावण तुलसी और नारायण अवतार नरसिंह देवता स्थान को साफ़ करती थीं। वह कहती थीं, 'पत्ते मत तोड़ो, ये  ब्रह्मा विष्णु शिव ही हैं। वर्षा ऋतु में हर जीव की रक्षा करनी चाहिए।

मैं तब नहीं समझती थी। आज महसूस करती हूँ — वो हमें केवल भक्ति नहीं, एक ‘आध्यात्मिक पर्यावरण-नीति’ सिखा रही थीं, जो भारतीय संस्कृति की गहराई में बसी है।

तभी से मेरे लिए हर मास श्रावण है, हर दिन शिव का दिन है, हर क्षण शिव की ऊर्जा से जुड़ने का प्रयास है।

श्रावण: ‘मैं’ से ‘हम’ की यात्रा

संयम केवल अपने शरीर के लिए नहीं होता। यह होता है:

·         प्रकृति को कष्ट से बचाने के लिए

·         पशु-पक्षियों को जीवन देने के लिए

·         समाज में अनुशासन और सामूहिक चेतना लाने के लिए

हमारे हर व्रत, पूजा और नियम का उद्देश्य होता है — "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया। सर्वे भद्राणि पश्यन्तु मा कश्चित् दुःखभाग् भवेत्।। सभी सुखी होवें, सभी रोगमुक्त रहें, सभी मंगलमय के साक्षी बनें और किसी को भी दुःख का भागी न बनना पड़े।"।

जिस दिन से आपके मन में यह भाव उत्पन्न और विकसित होना शुरू हुआ, उसी दिन से आपके जीवन में सुख, खुशी और तृप्ति आती हैं। 

VRIGHT PATH का दृष्टिकोण

हम मानते हैं कि श्रावण केवल व्रतों का नहीं, बल्कि जागरूकता और संतुलन का पर्व है।
यह एक "कर्म ब्रिज" है — जहां हम अपने विचार, व्यवहार और भावनाओं को प्रकृति से जोड़ते हैं।

"समय पवित्र है, पर सत्य उससे भी गहरा है।"
चाहे श्रावण जुलाई में आए या अगस्त में — उसका आध्यात्मिक उद्देश्य एक ही है — शिव से जुड़ना।


अंत में

श्रावण:

·         केवल खान-पान पर नियंत्रण नहीं है,

·         यह विचारों की शुद्धि,

·         प्रकृति के साथ सह-अस्तित्व,

·         और करुणा के विस्तार का समय है।

आज, जब हम आधुनिक जीवन की दौड़ में थकते जा रहे हैं, श्रावण हमें रोकता है — थोड़ा ठहरो, देखो, और जुड़ो — स्वयं से, प्रकृति से, और परम से।

राधे राधे। जय श्री सीता राम

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