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स्वतंत्रता के सही मायने: आधुनिक प्रेम और लिव-इन संबंधों की आंधी में टूटती मर्यादा: जीवन मूल्यों की पुनर्स्थापना का समय

आयशा राणा, सह-संस्थापकVRIGHT PATH

(Ancient Bharat Knowledge Platform for Clarity and Actions to Bridge Your Karma Gaps)

आज का युवा समाज एक ऐसी दिशा में बढ़ रहा है जहाँ प्रेम-संबंध, लिव-इन रिलेशनशिप और पूर्वविवाहिक शारीरिक संबंध सामान्य बात माने जा रहे हैं। परंतु यह आधुनिक जीवनशैली केवल व्यक्तिगत नहीं, बल्कि सामाजिक, मानसिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी गंभीर हानिकारक परिणाम दे रही है। (English )

इन संबंधों के कारण समाज में:

  • मानसिक तनाव, अवसाद और आत्म-चिंतन की कमी बढ़ रही है,
  • परिवार और विवाह संस्था कमजोर हो रही है,
  • चरित्र, संयम और आत्म-सम्मान का पतन हो रहा है,
  • और सबसे दुखदयुवा पीढ़ी संस्कार और मर्यादा से दूर होती जा रही है।

यह चिंता का विषय है, और इससे सनातन धर्म, वेद और शास्त्रों में वर्णित सामाजिक आदर्शों को भी ठेस पहुँच रही है।

रामायण: मर्यादा का शाश्वत आदर्श

हमारे ग्रंथरामायणमें भगवान श्रीराम ने एक पत्नी व्रत, संयमित जीवन और धर्म पर अडिग रहने की प्रेरणा दी। उन्होंने माता सीता से वैदिक विधि से विवाह कर पति-पत्नी के बीच की निष्ठा और गरिमा को उच्चतम स्थान दिया।

श्रीराम की जीवनशैली हमें सिखाती है कि:

  • संबंध केवल शरीर या भावना नहीं, धर्म और जिम्मेदारी भी होते हैं,
  • विवाह केवल सामाजिक रस्म नहीं, बल्कि आत्मिक बंधन और सांस्कृतिक संकल्प होता है,
  • जीवन में त्याग, धैर्य और मर्यादा होना आवश्यक है।

आज हम श्रीराम जैसे आदर्शों को भूलकर एक ऐसी जीवनशैली अपना रहे हैं जहाँ "अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता" के नाम पर संबंधों का उपहास किया जा रहा है।

वर्तमान संकट: स्वतंत्रता या अराजकता?

कानून हमें अधिकार देता हैपर शास्त्र हमें मर्यादा सिखाते हैं
आज की पीढ़ी:

  • प्यार और संबंधों को एक अनुभव या प्रयोग बना चुकी है,
  • विवाह और परिवार को बोझ समझने लगी है,
  • संबंधों में निष्ठा, उत्तरदायित्व और धैर्य कम होता जा रहा है।

इसका परिणाम हैटूटे हुए संबंध, माता-पिता से दूरी, यौन और मानसिक विक्षोभ, और एक खोखली जीवनशैली



आध्यात्मिक गुरु: समाज को दिशा देने वाले दीपस्तंभ

ऐसे समय में श्री प्रेमानंद जी महाराज और श्री अनिरुद्धाचार्य जी जैसे आध्यात्मिक गुरु सामने आकर सच को कहने का साहस दिखा रहे हैं।

  • अनिरुद्धाचार्य जी ने लिव-इन संबंधों और अनैतिक संबंधों पर कड़ी आलोचना की। कुछ लोग इसे कट्टर कह सकते हैं, पर यह सच की चेतावनी है।
  • वहीं, प्रेमानंद जी महाराज ने एक युवक को सलाह दी कि यदि वह स्त्रियों में रुचि नहीं रखता, तो किसी स्त्री से विवाह कर उसकी जिंदगी बर्बाद करे। उन्होंने ईमानदारी, आत्म-स्वीकृति और धर्म के संतुलन की बात की, जो आज के युग में अत्यंत आवश्यक है।

इन गुरुओं का सम्मान करना, उनके विचारों पर संवाद करना और समाज में धार्मिक चेतना को पुनर्स्थापित करना हमारी जिम्मेदारी है।



व्यक्तिगत अनुभूति

"जब मैं किशोरावस्था में थी, मेरे पिता जो भारतीय मूल्यों और अच्छे संस्कारों की प्रबल अनुयायी थे और हर दिन मेरे भीतर स्वाभिमान, आत्मसंयम और चरित्र की गरिमा भरने का प्रयास करते थे। वे कहते थे, “ चरित्र ही सब कुछ है- कभी किसी को या किसी चीज़ को अपनी गरिमा से समझौता मत करने देना।

आज हमारे आस-पास कितने ही लड़के-लड़कियाँ नैतिक दिशा से भटके हुए दिखाई देते है। कुछ लड़कियाँ और लड़के केवल विपरीत लिंग को आकर्षित करने के लिए कपड़े पहनते या व्यवहार करते है । कई लड़के लड़कियों को सम्मान से नहीं, वासना की दृष्टि से देखते है । दुख की बात यह है कि कई लड़कियाँ भी समाज, फिल्मों और आस-पास के वातावरण से प्रभावित होकर उसी रास्ते पर चल रही है।
एक स्त्री होने के नाते मैं जानती हूँ कि आज के दौर में अपने विचारों और आचरण की शुद्धता को बनाए रखना कितना कठिन होता जा रहा है। युवाओं को सही मूल्य प्रणाली सिखाना अब पहले से कहीं अधिक चुनौतीपूर्ण है।

मुझे विश्वास है कि यदि हम जड़ से जुड़ें, शास्त्रों से सीखें, और धर्म के दीपक को फिर से प्रज्वलित करें, तो हम अपनी अगली पीढ़ी को दिशा दे सकते हैंएक ऐसी दिशा जहाँ चरित्र ही सौंदर्य है, और मर्यादा ही शक्ति

एक अच्छे माता पिता, सामाजिक सदस्य और नागरिक होने के नाते यह हमारी जिम्मेदारी है कि हमारे बच्चे अच्छे संस्कार , सोच और बेहतरीन चरित्र, आचरण व  आदर से सुसज्जित आदर्श जीवन जिए।

VRIGHT PATH समाधान क्या है?

  1. संस्कार और शास्त्रों की शिक्षा को विद्यालय और घरों में पुनः प्रारंभ किया जाए।
  2. युवा पीढ़ी को धैर्य, संयम और आत्म-मूल्यांकन के महत्व को समझाया जाए।
  3. परिवारों में खुले संवाद और धार्मिक चर्चा को बढ़ावा मिले।
  4. विवाह को केवल सामाजिक कर्तव्य नहीं, आध्यात्मिक यात्रा के रूप में प्रस्तुत किया जाए।

स्वतंत्रता का अर्थ उच्छृंखलता नहीं है

संविधान ने हमें अभिव्यक्ति और जीवन जीने की स्वतंत्रता दी है। परंतु इसका यह अर्थ नहीं कि हम अपनी सीमाएँ और मर्यादा भूल जाएं। स्वतंत्रता तब तक सुंदर है जब तक वह समाज, परिवार और आत्मा के हित में हो।

हमें आज ऐसे संदेशों और विचारों की आवश्यकता है जो युवाओं को सही-गलत का स्पष्ट बोध दें।
हमें अनुशासन में ही सुख और मर्यादा में ही सम्मान प्राप्त होता है।

आत्मा को ऊँचाई दे

आइए, हम स्वयं के लिए और आने वाली पीढ़ियों के लिए सोच-समझकर सही चुनाव करें।
भारत की असली ताकत उसकी आध्यात्मिक चेतना, नैतिक मूल्यों और मजबूत पारिवारिक संरचना में रही है। अब समय गया है कि हम फिर से अपनी इन्हीं जड़ों की ओर लौटें।
आगामी पीढ़ी को यह सिखाना ज़रूरी है कि सच्ची स्वतंत्रता सभी सीमाओं को तोड़ने में नहीं, बल्कि उस धर्म से जुड़ने में है जो आत्मा को ऊँचाई देता है।

"धर्मो रक्षति रक्षितः" — धर्म उनकी रक्षा करता है, जो धर्म की रक्षा करते हैं।

79वें स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

जय हिंद! जय भारत

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